Friday, June 29, 2012

समाचार पत्र का स्वरुप - 04

संपादक / कार्यकारी संपादक

समाचारपत्रों की प्रबंध व्यवस्था में पिछले कुछ दशको से मालिक संपादक की अवधारणा भी बलवती हुई है. इस व्यवस्था में मालिक का नाम समाचारपत्र के प्रमुख संपादक के रूप दिया जाता है तथा कार्यकारी या अधिशाषी संपादक के नाते कामकाज कोई वरिष्ठ  पत्रकार या संपादक संभालता है.

 आजकल समाचारपत्र समूहों के विभिन्न  प्रदेशो से अलग अलग संस्करण प्रकाशित किये जाने की परम्परा भी चल पड़ी है. इस व्यवस्था में स्थानीय संपादक की नियुक्ति कर सम्बंधित प्रदेश के संस्करण का प्रकाशन किया जाता है. कार्यकारी संपादक या स्थानीय अथवा प्रभारी संपादक सम्बंधित समाचारपत्र में मुख्य भूमिका निभाते है.

 रोजाना अपने सहायक संपादको की बैठक में अख़बार के नवीनतम संस्करण का मूल्यांकन और अगले संस्करण की रुपरेखा के बारे में संपादक विचार विमर्श करते है. इस बैठक में अन्य प्रतिस्पर्धी समाचारपत्रों से अपने पत्र की तुलना भी की जाती है, ताकि रह गए अथवा छुट गए समाचारों का फोलोअप हो सके. संपादक अपने सहयोगियों की उनकी योग्यता, अनुभव एवं विशेष रूचि के अनुरूप अलग अलग दायित्व  सौपता है और  सहज भाव से उनके काम का मूल्यांकन भी करता है ताकि आवश्कतानुसार भविष्य में और उतरदायित्व दिए जा सके. सम्पादकीय कार्य और निरिक्षण की इस प्रकिया में संपादक को भी विभीन्न विषयों के गहन अध्ययन तथा नवीनतम जानकारी से अवगत रहना चाहिए तभी वह अपनी टीम का सुयोग्य नेतृत्व कर पता है तथा अखबार की प्रतिष्ठा को बढाने में सफलता हासिल करता है.

Thursday, June 28, 2012

समाचार पत्र का स्वरुप - 03

प्रधान संपादक

किसी भी समाचारपत्र का मुखिया, उसका प्रधान संपादक होता है, जिसके मार्गदर्शन में समाचारपत्र का प्रकाशन होता है.एक जमाना था जब प्रधान संपादक समाचारपत्र की रीति नीति तय करते थे और संपादक विशेष से समाचारपत्र की साख जुडी होती थी.
                             प्रधान संपादक पत्र की रीति - नीति और व्यवस्था के अनुसार सम्पादकीय विभाग के सहयोगियों के चयन से लेकर उनके बीच कार्य  - विभाजन तथा उसके निरीक्षण का दायित्व निभाते है.  समाचारपत्र में प्रकाशित की जाने वाली प्रत्येक सामग्री के लिए क़ानूनी रूप से संपादक तहत उसके प्रकाशक को उत्तरदायी मन जाता है. इसलिए संपादक शब्द की व्याख्या 1867 के प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन ऑफ बुक एक्ट में इस  प्रकार की गयी है – EDITOR MEANS THE PERSON WHO CONTROLS THE SELECTIONS OF THE MATTER THAT IS PUBLISHED IN A NEWSPAPER.  इसी नियम के अनुसार प्रकशित समाचारपत्र के प्रतेक अंक पर मुद्रक और प्रकाशक के साथ साथ संपादक का नाम भी प्रकाशित किया जाता है.
पिछले दशको से संपादक संस्था का निरंतर अवमूल्यन हुआ है. समाचारपत्रों की प्रबन्ध व्यवस्था में मालिको - प्रबंधको का सीधा हस्तक्षेप होने से सम्पादकीय स्वतंत्रता का आस्तित्व खतरे में पड़ गया है. अब समाचारपत्रों में प्रबंधक प्रधान होते जा रहे है. आर्थिक समचापत्रो में तो संपादक मार्केटिंग के पड़ सृजित  किये जाने जाने लगे है.
इस सबके बावजूद समाचारपत्रों में प्रधान संपादक या संपादक का अहम् स्थान है. जो नियमित रूप से प्रकाशित समाचारपत्र को आम पाठको तक पहुचाने का मार्ग प्रशस्त करते है. जैसा की हम जानते है की समाचारपत्र का प्रकाशन एक टीम वर्क के रूप में होता है और स्वाभाविक रूप से संपादक इस टीम का कप्तान होता है. प्रधान संपादक या संपादक, समाचारपत्र के सम्पादकीय विभाग के प्रमुख के नाते अपने सहयोगियों को आवश्यक दिशा निर्देश देता है. वह अपने वरिष्ट सहयोगियों के साथ प्राय नियमित रूप में बैठक बुलाकर विचार विमर्श करता है तथा प्रकाशित समाचारपत्र की समीक्षा के साथ अगले दिन प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र के बारे में चर्चा करता है. समाचारपत्र एक ऐसा मैदान है जहाँ पर हर रोज तथा समाचार का प्रत्येक संस्करण, मैच के सामान होता है.

Tuesday, June 26, 2012

समाचार पत्र का स्वरुप - 02

वर्षो पहले समाचारपत्रों की छपाई तथा कम्पोजिंग की जो व्यवस्था थी उससे अब बहुत परिवर्तन हो चुका है. इससे सम्पादकीय विभाग के स्वरुप पर भी असर पड़ा है. अब कम्प्यूटर का जमाना है पहले पत्रकार हाथ से समाचार लिखते थे, फिर टाइप करके समाचार लिखने का युग आया और अब तो सीधे कम्प्यूटर पर समाचार देने का जमाना आ गया है. रिपोर्टर की डेस्क पर कम्प्यूटर का टर्मिनल लगा दिया जाता है और उप संपादक, समाचार संपादक आदि सहयोगी अपनी डेस्क पर बैठे बैठे कम्प्यूटर तकनीक से रिपोर्टर के समाचार में अवाश्कतानुसार संशोधन तथा हेडिंग लगाकर  पेज मेकर कक्ष को भेज सकते है. कम्प्यूटर की स्क्रीन पर पेज का मेकअप तथा अवाश्कतानुसार इसमें फेरबदल की गुंजाईस होती है.अब तो मॉडम तथा संचार  उपग्रह लिंक के माध्यम से पूरा अखबार एक स्थान से दुसरे स्थान पर तैयार करने की सुविधा सुलभ हो गयी है. सम्पादकीय विभाग को समाचारों का गलियारा कहा जाता है. सम्पादकीय विभाग में समाचार समितियों की टेलिप्रिंटर  मशीनो  [ अथवा कंप्यूटर मॉडम पर समाचारों की प्राप्ति ], अपने संवाददाता द्वारा प्राप्त खबरे, प्रेस विज्ञप्तियो द्वारा मिलने वाली खबरे तथा फोटोग्राफ इत्यादि  में से खबरों का चयन एवं  सम्पादन किसी समाचारपत्र के संस्करणों की संख्या के आधार पर पारी दर पारी चलता रहता है.

सम्पादकीय विभाग की संरचना
एक ज़माने में सम्पादकीय विभाग में कार्यरत पत्रकारों की संख्या उगलियों पर गिनी जा सकती थी. किन्तु अब ऐसा नहीं है. समाचारपत्रों की पृष्ठ संख्या बढने, एक से अधिक संस्करणों का प्रकाशन तथा आधुनिक तकनीक की वजह से अधिक प्रेस मैटर की जरुरत को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय, प्रादेशिक तथा स्थानीय स्तर पर भी समाचारपत्रों में पत्रकारों की संख्या पांच - दस से लेकर डेढ  से दो सौ तक पहुंची है जो विभिन पारियों में कार्य करते है. इस तरह सम्पादकीय विभाग का कक्ष सुबह के कुछ घंटे के अलावा दिन रात गतिशील बना रहता है.

Wednesday, June 20, 2012

समाचार पत्र का स्वरुप - 01

भारत में मोटे तौर पर समाचार पत्रों के स्वरुप को तीन भागो में विभक्त किया जा सकता है. इन्हें राष्ट्रीय , प्रादेशिक, और स्थानीय श्रेणी में शामिल किया जा सकता है. चूँकि नई दिल्ली हमारी राजधानी है , इसलिए वहाँ से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्रों को राष्ट्रीय समाचारपत्र की संज्ञा दी जाती है. इनमे हिन्दी के दैनिक  हिंदुस्तान , नवभारत टाइम्स , जनसता , पंजाब केशरी, जागरण , राष्ट्रीय सहारा, आदि तथा अंग्रेजी में हिंदुस्तान टाइम्स , स्टेटमेन   , इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ़ इंडिया , द हिन्दू, इत्यादि समाचारपत्र प्रमुख रूप से शामिल है. इनमे से कुछ समाचारपत्रों ने पिछले , कई वर्षो से प्रादेशिक राजधानियों तथा अन्य केन्द्रों से अपने विभिन्न संस्करण आरम्भ किया है. इनके अलावा कुछ समाचारपत्रों यथा पंजाब केशरी, जागरण आदि ने अन्य प्रदेशो से आगे बढकर राजधानी दिल्ली से अपने संस्करण प्रकाशित कर अपने समाचारपत्रों को राष्ट्रीय समाचारपत्रों की श्रेणी में शामिल कर लिया है.
इसी तरह प्रादेशिक राजधानियों से प्रकाशित किये जाने वाले समाचारपत्र प्रादेशिक स्तर के समाचारपत्रों की श्रेणी में सम्मिलित किये जाते है. लेकिन पिछले कुछ दशको से इन समाचारपत्रों का प्रकाशन भी संभाग मुख्यालय अथवा अन्य प्रकाशन केंद्र से नए संस्करणों का प्रकाशन आरम्भ किया.
इस परिदृश्य से पहले संभाग स्तर पर या जिला स्तर पर अथवा किसी प्रमुख शहर से प्रकाशित किये जाने वाले समाचारपत्रों को स्थानीय समाचारपत्रों की संज्ञा दी जाती थी. लेकिन राष्ट्रीय या फिर प्रादेशिक स्तर के समाचारपत्रों के संस्करण जगह जगह से प्रकाशित किये जाने की प्रतिस्पर्धा में स्थानीय समाचारपत्रों का अस्तित्व भी संकट में पड़ गया है. क्षेत्रीय संस्करणों के प्रकाशन से समाचारों का दायरा भी सिमटता जा रहा है. तथा समाचारपत्र अपने अंचल तक के समाचारों तक सीमित हो गए है. स्थिति यह है हो गई है की एक संभाग या प्रमुख प्रकाशन केंद्र से प्रकाशित होने वाले संस्करण में उसी क्षेत्र के समाचारों का समावेश होता है और प्रमुख समाचारों को छोड़कर पाठक को यह पता नहीं चल पाता की राज्य के दुसरे संभाग में क्या कुछ घट रहा है अथवा वहा  के समाचार क्या है. इस स्थिति का एक लाभ यह हुआ की अब समाचारपत्रों के अलग अलग संस्करणों में उस क्षेत्र के गावों, कस्बो तक के समाचारों को स्थान मिलने लगा है. लेकिन एक अंचल से दुसरे अंचल में घटित होने वाले घटनाक्रम के बारे में लोग अनजान से रह जाते है. अलबता कोई बड़ा हादसा या दुर्घटना घटने पर सम्बंधित समाचार सभी संस्करणों में प्रकाशित किया जाता है.स्वाभाविक रूप से ऐसे समाचार राष्ट्रीय स्तर के  समाचारपत्रों में भी स्थान पाते है.